Saturday 10 August 2013

शेरशाह सूरी : एक महान राष्ट्र निर्माता

शेरशाह सूरी एक ऐसा व्यक्ति था, जो ज़मीनी स्तर से उठ कर शंहशाह बना। ज़मीनी स्तर का यह शंहशाह अपने अल्प शासनकाल के दौरान ही जनता से जुड़े अधिकांश मुद्दो को हल करने का प्रयास किया। हालांकि शेरशाह सूरी का यह दुर्भाग्य रहा कि उसे भारतवर्ष पर काफ़ी कम समय शासन करने का अवसर मिला। इसके बावजूद उसने राजस्व, प्रशासन, कृषि, परिवहन, संचार व्यवस्था के लिए जो काम किया, जिसका अनुसरण आज का शासक वर्ग भी करता है। शेरशाह सूरी एक शानदार रणनीतिकार, आधुनिक भारतवर्ष के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला महान शासक के रुप में नजर आएगा। अगर हम मध्यकालीन इतिहास में शेरशाह सूरी के पन्ने पलटे तो हममें से अधिकांश को शेरशाह सूरी एक शानदार रणनीतिकार, आधुनिक भारतवर्ष के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला महान शासक के रुप में नजर आएगा। जिसने अपने संक्षिप्त शासनकाल में शानदार शासन व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत किया।

एक शेर मारने के उपलक्ष्य में शेर खाँ की उपाधि से सुशोभित

शेरशाह सूरी का वास्तविक नाम फरीद खाँ था। वह वैजवाड़ा में अपने पिता हसन की अफगान पत्‍नी से उत्पन्न पुत्र था। उसका पिता हसन बिहार के सासाराम का जमींदार था । दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खाँ लोहानी ने उसे एक शेर मारने के उपलक्ष्य में शेर खाँ की उपाधि से सुशोभित किया और अपने पुत्र जलाल खाँ का संरक्षक नियुक्‍त किया। बहार खाँ लोहानी की मृत्यु के बाद शेर खाँ ने उसकी बेगम दूदू बेगम से विवाह कर लिया और वह दक्षिण बिहार का शासक बन गया। इस अवधि में उसने योग्य और विश्‍वासपात्र अफगानों की भर्ती की। 1529 ई. में बंगाल शासक नुसरतशाह को पराजित करने के बाद शेर खाँ ने हजरत आली की उपाधि ग्रहण की। 1530 ई. में उसने चुनार के किलेदार ताज खाँ की विधवा लाडमलिका से विवाह करके चुनार के किले पर अधिकार कर लिया। 1534 ई. में शेर खाँ ने सुरजमठ के युद्ध में बंगाल शासक महमूद शाह को पराजित कर 13 लाख दीनार देने के लिए बाध्य किया।
 
Civil Services Exam  : Sher Shah Suri
इस प्रकार शेरशाह ने अपने प्रारम्भिक अभियान में दिल्ली, आगरा, बंगाल, बिहार तथा पंजाब पर अधिकार कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। 1539 ई. में चौसा के युद्ध में हुमायूँ को पराजित कर शेर खाँ ने शेरशाह की अवधारणा की। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को पुनः हराकर राजसिंहासन प्राप्त किया। शेरशाह कन्‍नौज युद्ध की विजय के बाद वह कन्नौज में ही रहा और शुजात खाँ को ग्वालियर विजय के लिए भेजा । वर्यजीद गुर को हुमायूँ को बन्दी बनाकर लाने के लिए भेजा । नसीर खाँ नुहानी को दिल्ली तथा सम्बलपुर का भार सौंप दिया । शेर खाँ धीरे-धीरे सर्वाधिक शक्‍तिशाली अफगान नेता बन गया। अन्ततः शेरशाह का 10 जून, 1540 को आगरा में विधिवत्‌राज्याभिषेक हुआ । उसके बाद 1540 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया । बाद में ख्वास खाँ और हैबत खाँ ने पूरे पंजाब पर अधिकार कर लिया । फलतः शेरशाह ने भारत में पुनः द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना किया । इतिहास में इसे सूरवंश के नाम से जाना जाता है । सिंहासन पर बैठते समय शेरशाह 68 वर्ष का हो चुका था और 05 वर्ष तक शासन सम्भालने के बाद मई 1545 ई. में उसकी मृत्यु हो गई ।

कई सुधार और अनेको नए व्यवस्था का अग्रदूत

शेरशाह सूरी ने भारतवर्ष में ऐसे समय में सुढृढ नागरिक एवं सैन्य व्यवस्था स्थापित की जब गुप्त काल के बाद से ही एक मज़बूत राजनीतिक व्यवस्था एवं शासक का अभाव-सा हो गया था। शेरशाह सूरी ने ही सर्वप्रथम अपने शासन काल में आज के भारतीय मुद्रा रुपया को जारी किया। इसीलिए इतिहासकार शेरशाह सूरी को आधुनिक रुपया व्यवस्था का अग्रदूत भी मानते है। मौर्यों के पतन के बाद पटना पुनः प्रान्तीय राजधानी बनी, अतः आधुनिक पटना को शेरशाह द्वारा बसाया माना जाता है।
वह पहला बादशाह था, जिसने बंगाल के सोनागाँव से सिंधु नदी तक दो हज़ार मील लम्बी पक्की सड़क बनवाई थी। उस सड़क पर घुड़सवारों द्वारा डाक लाने−ले−जाने की व्यवस्था थी। यह मार्ग उस समय 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था। बंगाल से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस (शुद्ध= क्रोश) या 2500 किलो मीटर लम्बी थी। शेरशाह ने इस सड़क पर यात्रियों की सुविधा के लिए प्रत्येक कोस पर कोस मीनार बनवायीं, जहाँ पर ठहरने के लिए सराय और पानी का बंदोबस्त रहता था। ब्रजमंडल के चौमुहाँ गाँव की सराय और छाता गाँव की सराय का भीतरी भाग उसी के द्वारा निर्मित हैं। दिल्ली में उसने 'शहर पनाह' बनवाया था, जो आज वहाँ का 'लाल दरवाज़ा' है। दिल्ली का 'पुराना क़िला' भी उसी के द्वारा बनवाया माना जाता है। उसने डाक व्यवस्था को दुरुस्त किया एवं घुड़सवारों द्वारा डाक को लाने−ले−जाने की व्यवस्था की। उसके फरमान फारसी के साथ नागरी अक्षरों में भी होते थे।
शेरशाह का एक महत्त्वपूर्ण सुधार मुद्रा में सुधार था। उसने सोने, चाँदी एवं तांबे के आकर्षक सिक्के चलवाये। कालान्तर में इन सिक्कों का अनुकरण मुग़ल सम्राटों ने किया। शेरशाह ने 167 ग्रेन सोने की अशरफी, 178 ग्रेन का चाँदी का रुपया एवं 380 ग्रेन तांबे का 'दाम' चलवाया। उसके शासन काल में कुल 23 टकसालें थी। उसने अपने सिक्कों पर अपना नाम, पद एवं टकसाल का नाम अरबी भाषा एवं देवनागरी लिपि में खुदवाया। शेरशाह के रुपये के विषय में स्मिथ ने कहा कि, "यह रुपया वर्तमान ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली का आधार है।
शेरशाह ने भूमि सुधार के अनेक कार्य किए। उसने भूमि की नाप कराई, भूमि को बीघों में बाँटा, उपज का 3/1 भाग भूमिकर के लिए निर्धारित किया। उसने भूमिकर को अनाज एवं नकद दोनों रू में लेने की प्रणाली विकसित कराई। पट्टे पर मालगुजारी लिखने की व्यवस्था की गई। किसानों को यह सुविधा दी गई कि वे अपना भूमिकर स्वयं राजकोष में जमा कर सकते थे। अकबर के शासनकाल की भूमि व्यवस्था काफी कुछ इसी पर आधारित थी। बाद में अंग्रेजों ने भी इसे ही चालू रखा।
शेरशाह की न्याय व्यवस्था अत्यन्त सुव्यवस्थित थी। शेरशाह के शासनकाल में फौजदारी और दीवानी के स्थानीय मामले की सुनवाई के लिए दौरा करने वाले मुंसिफ नियुक्त किये गये। प्रधान नगरों के काजियों के अलावा सरकार में एक प्रधान मुंसिफ भी रहता था जिसे अपील सुनने तथा मुंसिफों के कार्यों के निरीक्षण करने का अधिकार था। शेरशाह ने पुलिस एवं खुफिया विभाग की भी स्थापना की थी।
शेरशाह के समय में साहित्य, कला, एवं सांस्कृतिक प्रगति भी उच्च स्तर पर थी। शेरशाह के शासनकाल में मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्‍मावत की रचना की। इनके शासन में फारसी तथा हिन्दी का पूर्ण विकास हुआ।
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व्यवस्था सुधारक

शेरशाह को व्यवस्था सुधारक के रूप में माना जाता है। शासन सुधार के क्षेत्र में भी शेरशाह ने एक जनहितकारी व्यवस्था की स्थापना की। जिससे काफी कुछ अकबर ने भी सीखा था। शासन के सुविधाजनक प्रबन्ध के लिए उसने सारे साम्राज्य को 47 भागों में बाँटा था, जिसे प्रान्त कहा जाता है।
प्रत्येक प्रान्त सरकार, परगने तथा गाँव परगने में बँटे थे। काफी कुछ यह व्यवस्था आज की प्रशासनिक व्यवस्था से मिलती है। शेरशाह के शासन काल की भूमि व्यवस्था अत्यन्त ही उत्कृष्ट थी। उसके शासनकाल में महान भू-विशेषज्ञ टोडरमल खत्री था। जिसने आगे चलकर अकबर के साथ भी कार्य किया।

हिन्दू के लिए मित्रता की भावना

अगर इतिहास अकबर को महानतम धर्मनिरपेक्ष सम्राट की श्रेणी में रखता है तो कई इतिहासकारो ने अकबर के ऐतिहासिक प्रेरणास्रोत शेरशाह सूरी (1486 – 1545) को माना है। शेरशाह सूरी ने अपने शासन कल में कई ऐसेकार्यो को किया जो किसी मुस्लिम शासक द्वारा हिन्दू के लिए मित्रता की भावना को दर्शाता है । दिल्ली के सुल्तानों की हिन्दू विरोधी नीति के ख़िलाफ़ उसने हिन्दुओं से मित्रता की नीति अपनायी। जिससे उसे अपनी शासन व्यवस्था सृदृढ़ करने में सहायता मिली। उसका दीवान और सेनापति एक हिन्दू सरदार था, जिसका नाम हेमू (हेमचंद्र) था। उसकी सेना में हिन्दू वीरों की संख्या बहुत थी। उसने अपने राज्य में शांति स्थापित कर जनता को सुखी और समृद्ध बनाने के प्रयास किये। उसने यात्रियों और व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया। लगान और मालगुज़ारी वसूल करने की संतोषजनक व्यवस्था की। शेरशाह सूरी के फ़रमान फ़ारसी भाषा के साथ नागरी अक्षरों में भी होते थे। लेकिन शेरशाह ने अफ़ग़ानों के दबाब के कारण हिन्दुओं से जज़िया कर को समाप्त नहीं किया था।
शेरशाह सूरी का शहर बनारस-कोलकाता रोड पर सासाराम था। यहीं पर उसने अपने जीते जी अपना मक़बरा बनवाना शुरू कर दिया था। मक़बरा पत्थरों से बना है। मक़बरे के सबसे ऊपरी सिरे से पूरे सासाराम का दृश्य साफ दिखाई देता है। यह मक़बरा पूर्वकालीन स्थापत्य शैली की पराकाष्ठा तथा नवीन शैली के प्रारम्भ का द्योतक माना जाता है, इसे झील के अन्दर ऊँचे टीले पर निर्मित करवाया गया है। शेरशाह ने सासाराम के पास में ही रोहतासगढ़ के दुर्ग एवं कन्नौज के स्थान पर 'शेरसूर' नामक नगर बसाया। जो उत्कृष्ट वास्तुकला का नमूना था ।शेरशाह सूरी के योगदान को देखते हुए अंग्रेज़ों ने उनके मक़बरे का संरक्षण शुरु किया। उपरोक्त तथ्यों द्वारा हम यह आसानी से कह सकते है कि शेरशाह सूरी महान राष्ट्र निर्माता थे।


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