99 साल पहले दादा साहब फालके ने 1913 में राजा हरिशचंद्र की फिल्म बनाई थी, एक ऐसा राजा जो कभी झूठ नहीं बोलता था, जरूरत पड़ने पर भी झूठ का सहारा नहीं लेता। यह एक मूक फिल्म थी। वर्तमान में सैंकड़ों फिल्में विभिन्न भाषाओं में बन चुकी हैं। हम हिंदी सिनेमा की सदी की ओर कदम रख चुके हैं और 21 अप्रैल 2013 में हिंदी सिनेमा अपने 100 वर्ष पूरे कर लेगा।
राजा हरिशचंद्र मई 1913 में तैयार हुई थी। फिल्म बहुत जल्दी भारत में लोकप्रिय हो गई और 1930 तक लगभग 200 फिल्में भारत में बन रही थीं। दादा साहब फालके द्वारा बनाई गई यह फिल्म 1914 में लंदन में दिखाई गई। पहली बोलती फिल्म थी अरदेशिर ईरानी द्वारा बनाई गई आलम आरा। इस फिल्म को दर्शकों की खूब प्रशंसा मिली और इसके बाद सभी बोलती फिल्में बनीं। इसके बाद देश विभाजन जैसी ऐतिहासिक घटनाएं हुर्ई। उस समय बनीं हिंदी फिल्मों पर इसका प्रभाव छाया रहा।
1950 से हिंदी फिल्में श्वेत-श्याम से रंगीन हो गई। उस दौर में फिल्मों का विषय प्रेम होता था और गाने फिल्म का महत्वपूर्ण अंग बन गया था। इस तरह 1960-70 के दशक में फिल्मों में हिंसा का प्रभाव रहा। 1980-90 के दशक में दोबारा प्रेम पर आधारित फिल्में दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुर्ई। वर्ष 1990 के बाद बनीं फिल्में भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चा में रही। विदेशों में हिंदी फिल्मों का चर्चा में रहने का मुख्य कारण प्रवासी भारतीय थे और फिल्मों में भी प्रवासी भारतीयों को दिखाया जाता था।
अब इतने सालों में हिंदी सिनेमा में ने अपनी अलग पहचान बना ली है। हिंदी सिनेमा को देश में ही नहीं विदेशों में भी अच्छी-खासी पहचान मिली। हिंदी सिनेमा के शतक के जश्न के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय अपनी तैयारियां कर रहा है। हालांकि इसकी अभी तक कोई आधाकारिक पुष्टि नहीं की गई है। हिंदी सिनेमा का शतक उतने ही गर्व की बात है जितना कि सचिन का श्तकों का शतक। सूत्रों की मानें तो बॉलीवुड सौ साल के इस जश्न को पूरे साल मनाएगा। इस दौरान बॉलीवुड सिनेमा को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले लोगों को सम्मानित करने की भी योजना बना रहा है।
दादा साहब फाल्के
दादा साहब फाल्के को भारतीय सिनेमा का पितामह कहा जाता है। दादा साहब फाल्के सर जेजे स्कूल ऑर्फ आटर्स के प्रशिक्षित सृजनशील कलाकार थे। वह मंच के अनुभवी अभिनेता थे और शौकिया जादूगर। वह प्रिटिंग के कारोबार में थे। 1910 में उनके एक साझेदार ने उनसे अपना आर्थिक सहयोग वापस ले लिया। कारोबार में हुई हानि से उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया। उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ईसामसीह पर बनीं एक फिल्म देखी। फिल्म देखने के दौरान ही उन्होंने निर्णय किया कि उन्हें एक फिल्मकार बनना है। उसके बाद से उन्होंने फिल्मों पर अध्ययन और विश्लेषण करना शुरू कर दिया। फिल्मकार बनने के इसी जुनून को साथ लिए वह 1912 में फिल्म प्रोडक्शन में क्रैश कोर्स करने के लिए इंग्लैंड चले गए और हेपवर्थ के अधीन काम करना सीखा।
ऐसे बनीं राजा हरिशचंद्र
दादा साहब फालके ने बहुत मुश्किलों के साथ फिल्म राजा हरिशचंद्र बनाई। उस दौर में उनके सामने कोई मानक नहीं थे। फिल्म बनाने के लिए सब तरह की व्यवस्थाएं उन्हें स्वयं ही करनी पड़ी। अभिनय करना सीखना पड़ा, दृश्य लिखने पड़े। फोटोग्राफी करनी पड़ी और फिल्म प्रोजेक्शन के काम भी सीखने पड़े। महिला कलाकार उपलब्ध ना होने के कारण उनकी सभी नायिकाएं पुरुष कलाकार थे(वेश्या चरित्र को छोड़कर)। होटल का एक पुरुष रसोइया सालुंके ने भारतीय फिल्म की पहल नायिका की भूमिका की। शुरू में शूटिंग दादर के एक स्टूडियो में सेट बनाकर की गई। सभी शूटिंग दिन की रोशनी में की गई। क्योंकि वह एक्पोज्ड फुटेज को रात में डेवलप करते थे और प्रिंट करते थे। छह माह में 3700 फीट की लंबी फिल्म तैयार हुई। 21 अप्रैल 1913 को ऑलम्पिया सिनेमा हॉल में यह रिलीज की गई। सभी लोगों ने इस फिल्म की उपेक्षा की लेकिन फाल्के जानते थे कि उन्होंने फिल्म आम दर्शकों के लिए बनाई है। अत: फिल्म जबरदस्त हिट रही।
Blogged By::-Rajesh_Patel
Courtesy::-Dainik Jagran
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